कोई नहीं पूछता अब मुझसे, अरे क्या हुआ !
लेकिन कोई नहीं पूछता अब मुझसे,
अरे क्या हुआ !
ढूंढती हूँ तुझे हर नए सवेरे में,
दिन के उजाले से, रात के अँधेरे में,
सुनती हूँ खामोशियों में आहट तेरी ,
लेकिन कोई नहीं पूछता अब मुझसे,
अरे क्या हुआ !
सोचती हूँ काश तू भूले से आ जाये,
चाहे मुझे कोई झूठा सपना दिखलाए,
तुझे ढूंढ़ते हुए थक कर बैठ जाती हूँ,
लेकिन कोई नहीं पूछता अब मुझसे,
अरे क्या हुआ !
अरे क्या हुआ !
ज़र्रा - ज़र्रा बात करता है तेरी,
कायनात से लड़ाई होती है मेरी,
जो हुआ कुछ ठीक तो न था मगर,
बाद का दर्द किसी को पता नहीं,
लेकिन कोई नहीं पूछता अब मुझसे,
अरे क्या हुआ !
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